Tuesday 24 October 2023

क्या इच्छा, आशा, अपेक्षा, आकांशा यही सब मानव समाज के चालक होते है ?

 

मुझे नयी धारावाहिक स्टार प्लस पर नये सिरे से प्रसारित कि गई महाभारत गाथा और इसमे से सारे पात्र उनके संघर्ष कि कहाणी पुन्हा पुन्हा सुनने का अवसर मिला. 

श्री. कृष्ण भगवान (सौरभ जैन जी उनका एक यादगार अजरामर किरदार ) उनके इस किरदार ने मुझपर कुछ ऐसा असर किया  कि मैने सारे महाभारत के एपिसोड पुन्हा पुन्हा सुनकर उसमे से मेरे सबसे अधिक प्रिय पात्र श्री. कृष्ण भगवान के लगभग सारे डायलॉग एक डायरी में लिख लिये ताकी जब भी कभी मुझे अकेलापण महसूस हो, मेरी सोच  नकारात्मकता से भर जाये तब मे श्री. कृष्ण भगवान के इन्ही मधुर बोल एवंम वचन को पढकर पुन्हा मेरी उर्जा एक जगह केंद्रित करके मेरे जीवन का लक्ष्य हासील कर सकू.  

बस यही विचार के साथ मेने मेरे अपने डायरी में लिखे वो सारे डायलॉग जो कि स्टार प्लस (Star plus) और  डिस्ने +  हॉट स्टार (Dinsey + Hotstar) पर १६ सप्टेंबर २०१३ से १६ ऑगस्ट २०१४ में प्रदर्शित कि गयी महाभारत  गाथा कि पेशकश हे उन्हे यहा पर पुन्हा एक बार जैसे शब्द है वैसे ही लिखणे कि कोशिश कि है.

सिद्धार्थ कुमार तिवारी और अन्य लिखित, अमोल सुर्वे, सिद्धार्थ कुमार आनंद और अन्य द्वारा निर्देशित ये श्री. व्यास जीं कि महाभारत गाथा के श्री कृष्ण भगवान के मुख से निकले कुछ सवांद आपके लिये.  

                                                               श्री कृष्ण सार 

                                     श्री कृष्णके मधुर बोल एवम वचन - भाग -१

                इच्छा, आशा, अपेक्षा, आकांशा यही सब मानव समाज के चालक होते है ! 

                                                                    नही ?



                                               यदि कोई आप से पुछे, की आप कौन है ? 

                                                       तो आपका उत्तर क्या होगा ..?

                     आप तुरंत ही ये  जान जाएगें की आपकी इच्छाये ही आपके जीवन कि व्याख्या है.

                   कुछ पाने से मिली सफलता कुछ ना पाने से मिली निष्फलता ही आपका परिचय है 

अधिकतर लोग ऐसे जीते है, की स्वयंम भीतर से मरते रेहते है लेकिन अपनी इच्छाओ को नही मार पाते.

                        इच्छाए उन्हें दोडाती है, जिस प्रकार म्रिकृष्णा मृग को दौड़ाती है।  

                                परंतु इन्ही इच्छाओ कि गर्भ में ज्ञान का प्रकाश भी है. 

                                                                    कैसे ..?

जब इच्छाये अपूर्ण रहती है, तुटती है, तब वहिसे ही ज्ञान की किरण प्रवेश करती है मनुष्य के हृदय में.

                                                                     ना

                                                            ये कथा नहीं है 

                                                 केवल इच्छाओं के संघर्ष की, 

                नही है केवल महत्वाकांशाओ से जन्म लेने वाले भयावह रक्तपात की, ये कथा है, 

                                        इच्छाओं के गर्भ से उदित होते हुए ज्ञान की।


                    मै वासुदेव कृष्ण आप सभी को निमंत्रण देता हूँ। इस यात्रा पे चलने का.

                                जीवन का मर्म सिखायेगी, मनुष्य का धर्म सिखाएगी, 

                                   किचड से उठकर कमल बनने का कर्म सिखाएगी. 


                                                    और इस यात्रा का नाम 

                                                        !!! "महाभारत" !!!


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